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Class 10 Science Notes in hindI Chapter - 5

CLASS 10 SCIENCE NOTES IN HINDI
CHAPTER 5 : जैव प्रक्रम

प्रश्न :- किन वस्तुओं को सजीव वस्तुएँ कहा जाता है?

उत्तर :- सजीव वस्तुएँ :-  वे सभी वस्तुएँ होती हैं, जो पोषण, श्वसन, उत्सर्जन और वृद्धि जैसी क्रियाएँ करती है तथा जीवन चक्र को संचालित करती हैं। 

उदाहरण :- 

इस श्रेणी में मुख्यत: जीवित प्राणी जैसे मनुष्य, पशु और पौधे आदि आते हैं।

प्रश्न :- किन वस्तुओं को निर्जीव वस्तुएँ कहा जाता है?

उत्तर :- निर्जीव वस्तुएँ: वे सभी वस्तुएँ होती हैं, जिसमें पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, वृद्धि आदि जैसे जीवन के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए ये किसी प्रकार की जैविक क्रियाएँ नहीं कर पाते है।

उदाहरण :- 

इस श्रेणी में निर्जीव वस्तुएँ जैसे मिट्टी, पत्थर और लकड़ी आदि आते हैं।

प्रश्न :- सजीव और निर्जीव वस्तुओं में पाँच अंतर बताइए।

उत्तर :- सजीव और निर्जीव वस्तुओं में पाँच अंतर निम्नलिखित है।

सजीव 

निर्जीव 

1. सजीव श्वषन क्रिया करते हैं।

1. निर्जीव श्वषन क्रिया नहीं करते हैं।

2. सजीव वृद्धि करने में सक्षम होते हैं।

2. निर्जीव वृद्धि करने में सक्षम नहीं होते हैं।

3. सजीव जनन क्रिया करते हैं।

3. निर्जीव जनन क्रिया नहीं करते हैं।

4. सजीव स्थान परिवर्तन करने में सक्षम होते है।

4. निर्जीव स्थान परिवर्तन करने में सक्षम नहीं होते है।

5. सजीव पोषण करने में भी सक्षम होते हैं। 

5. निर्जीव पोषण करने में भी सक्षम नहीं होते हैं। 

नोट :-

विषाणु (Virus) में सजीव और निर्जीव दोनों के गुण होते है। जब यह बाहरी वातावरण में होता है, तब यह निर्जीव होता है। परंतु जब विषाणु (Virus) सजीव कोशिका में प्रवेश करता है, तब यह सजीव होता है।

प्रश्न :- जैव प्रक्रम क्या है?

उत्तर :- जैव प्रक्रम:  वे सभी प्रक्रियाएँ जो एक साथ मिलकर एक जीव के जीवन को बनाए रखने में मदद करती हैं, उन्हें जैव प्रक्रम कहते है।

उदाहरण :- 

श्वसन (Respiration), पाचन (Digestion), संचारण (Transportation), और प्रजनन (Reproduction)

प्रश्न :- जैव प्रक्रम में कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती है?

उत्तर :- जैव प्रक्रम में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती है :-

1. पोषण (Nutrition)

2. श्वसन (Respiration)

3. वहन (Transportation)

4. उत्सर्जन (Excretion)

प्रश्न :- पोषण क्या है?

उत्तर :- पोषण:- भोजन का सेवन करना, पचने के बाद भोजन का अवशोषण करना और शरीर द्वारा उसे ऊर्जा के रूप में उपयोग करना, इसे पोषण कहा जाता है।

प्रश्न :- पोषण कितने प्रकार के होते है?

उत्तर :- पोषण दो प्रकार के होते  है :-

1. स्वपोषी पोषण : जैसे:- पौधे, शैवाल तथा साइनेबैक्टीरिया 

2. विषमपोषी पोषण: जैसे:-  मनुष्य, गाय, शेर, तथा फफूंदी, प्रोटोजोआ

नोट :- 

विषमपोषी पोषण के तीन प्रकार होते है :-

1. मृतजीवी पोषण जैसे:- बैक्टीरिया, कवक तथा प्रोटोजोआ

2. परजीवी पोषण जैसे :- मलेरिया तथा गोलकृमि 

3. प्राणिसम पोषण जैसे :- मेंढ़क, मनुष्य तथा अमीबा

प्रश्न :- स्वपोषी पोषण क्या है?

उत्तर :- स्वपोषी पोषण :- वह प्रक्रिया जिसके द्वारा कोई जीव अपने आसपास के वातावरण से सरल अजैविक तत्वों जैसे कोर्बनडाई ऑक्साईड (CO2), पानी (H2O) और सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं ही तैयार करते हैं, उसे इस प्रक्रिया को स्वपोषण कहा जाता है। 

उदाहरण :-

हरे पौधे इसका अच्छा उदाहरण है।

नोट :-

1. स्वपोषी पोषण ऐसे जीवाणुओं में तथा हरे पौधों पाया जाता है, जो अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा स्वयं बनाते हैं।

2. स्वपोषी जीव अपनी  ऊर्जा तथा कार्बन की आवश्यकताएँ प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के माध्यम से पूरी करते हैं।

प्रश्न :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया क्या है? समझाइए।

उत्तर :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया :-  प्रकाश संश्लेषण वह जैविक प्रक्रिया है, जिसमें स्वपोषी जीव सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की मदद से जल (H2O) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को ऊर्जा में बदलकर ग्लूकोज़ (C6H12O6) जैसे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन (O2) और पानी का उत्सर्जन भी होता है। जिसका रासायनिक सूत्र निम्नलिखित है:-

6CO2 + 12H2O + प्रकाश ऊर्जा = C6H12O6 (ग्लूकोज़) + 6O2 + 6H2O

प्रश्न :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए कौन-कौन सी कच्ची सामग्री आवश्यक होती है?

उत्तर :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित कच्ची सामग्री आवश्यक होती है :-

1.  कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) :- यह पौधों को वायुमंडल से प्राप्त होता है।

2. जल (H2O) :- यह पौधों को मिट्टि से अवशोषित करके प्राप्त होता है।

3. सूर्य का प्रकाश :- यह पौधों को सूर्य से ऊर्जा के रूप में प्राप्त होती है।

4. क्लोरोफिल :- यह पौधों में पाया जाने वाला हरा रंगद्रव्य होता है।

प्रश्न :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में कौन-कौन सी घटनाएं होती है?

उत्तर :- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया निम्नलिखित घटनाएं होती है :-

1. क्लोरोफिल प्रकाश की ऊर्जा को अवशोषित करता है।

2. प्रकाश की ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरण होना।

3. जल के अणुओं का ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन में अपघटित होना।

4. कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित (अपचयन) होना।

प्रश्न :- क्लोरोप्लास्ट क्या है?

उत्तर :- क्लोरोप्लास्ट :- पत्तियों की कोशिकाओं में हरे रंग के छोटे-छोटे बिंदु होते हैं, जिन्हें कोशिकांग अथवा क्लोरोप्लास्ट कहते हैं। इन कोशिकांगों में क्लोरोफिल नामक हरा रंजक पाया जाता है। क्लोरोफिल नामक यह हरा रंजक प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में मदद करता है।

प्रश्न :- रंध्र क्या है?

उत्तर :- रंध्र :- पत्तियों की सतह पर पाए जाने वाले छोटे-छोटे छिद्रों को रंध्र कहते है।

प्रश्न :- रंध्र के प्रमुख कार्य कौन-कौन से है?

उत्तर :- रंध्र के प्रमुख कार्य  निम्नलिखित है :-

1. प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक गैसों का आदान-प्रदान मुख्य रूप से  रंध्र के माध्यम से ही होता है।

2. वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के दौरान जल वाष्प के रूप में रंध्र के द्वारा ही बाहर निकलता है।

प्रश्न :- रंध्र की रचना को समझाइए।

उत्तर :- रंध्र के चारो ओर दो विशेष कोशिकाएँ पायी जाती हैं जिन्हें द्वार कोशिकाएँ अथवा गार्ड कोशिकाएँ (Guard Cells) कहा जाता है। यही कोशिकाएँ रंध्र को खोलने तथा बंद करने का कार्य करती हैं, ताकि गैसों के आदान-प्रदान को नियंत्रित किया जा सके।

प्रश्न :- रंध्र की कार्य प्रणाली को समझाइए।

उत्तर :- रंध्र की कार्य प्रणाली इस प्रकार है:- जब द्वार कोशिकाओं में पानी प्रवेश करता है, तो वे फूल जाती हैं, जिसके कारण छिद्र खुल जाते हैं। दूसरी ओर, जब द्वार कोशिकाएँ सिकुड़ जाती हैं, तो छिद्र बंद हो जाता है। इस प्रक्रिया में रंध्र द्वारा जल की हानि होती है।

प्रश्न :- विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते है?

उत्तर :- विषमपोषी पोषण:- यह पोषण का वह तरीका है, जिसमें जीव अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों अथवा पौधों पर निर्भर होता है, पोषण के इस तरीके का तात्पर्य यह है कि जीव स्वयं से अपना भोजन बनाने में सक्षम नहीं होता है। 

उदाहरण :-

मनुष्य, पशु तथा पक्षी आदि।

प्रश्न :- विषमपोषी पोषण कितने प्रकार के होते है?

उत्तर :- विषमपोषी पोषण निम्नलिखत तीन प्रकार के होते हैं :-

1. मृतजीवी पोषण 

2. परजीवी पोषण 

3. प्राणिसम पोषण

प्रश्न :- मृतजीवी पोषण से आप क्या समझते है? 

उत्तर :- मृतजीवी पोषण :- इस पोषण में जीव अपना भोजन मृत तथा सड़े गले हुए जीवों के शरीर एवं उनके अवशेषों से प्राप्त करते हैं। इसमें जीव अन्य जीवों के मरने के बाद बचे हुए मृत कार्बनिक पदार्थों का उपयोग अपने भोजन के लिए करते हैं। 

उदाहरण :- 

फफूंदी और कवक

प्रश्न :- परजीवी पोषण से आप क्या समझते है? 

उत्तर :- परजीवी पोषण :- इस पोषण में जीव अन्य जीवों के शरीर के बाहर या अंदर रहकर, उन्हें मारे बिना, अपना पोषण उनसे प्राप्त कर लेते हैं। 

उदाहरण :-

जोक, अमरबेल, जूँ, तथा फीताकृमि

प्रश्न :- प्राणीसम पोषण से आप क्या समझते है? 

उत्तर :- प्राणीसम पोषण :- इस पोषण में जीव अपना भोजन संपूर्ण रूप से ग्रहण करते हैं, तथा उनका पाचन शरीर के भीतर होता है।

उदाहरण :- 

मनुष्य तथा अमीबा

प्रश्न :- एक कोशिकीय जीव अपना पोषण कैसे करते हैं? 

उत्तर :- एक कोशिकीय जीव अपने शरीर की पूरी सतह से भोजन ग्रहण कर सकते हैं

उदाहरण :-

अमीबा और पैरामीशियम।

प्रश्न :- अमीबा क्या है? ये क्या खाते है?

उत्तर :- अमीबा एक, प्राणीसमपोषी जीव है। ये एक कोशिका तथा अनिश्चत आकार वाला जीव है। यह कूटपादों (अपने शरीर से बाहर निकले हुए तंतुओं या झिल्ली) द्वारा भोजन ग्रहण करता है।

अमीबा निम्नलिखित चीजों को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं :- 1. बैक्टिरिया

2. शैवाल के छोटे टुकड़े

3. डायटम

4. मृत कार्बनिक पदार्थ

प्रश्न :- अमीबा में पोषण किस प्रकार होता है, समझाइए।

उत्तर :-  अमीबा में पोषण निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होता है :- 

1. अंतर्ग्रहण :- अमीबा कोशिकीय सतह से कूटपादों (अपने शरीर से बाहर निकले हुए तंतुओं या झिल्ली) की मदद से भोजन को पकड़ता है और वह भोजन एक खाद्य रिक्तिका में संगलित हो जाता है।

2. पाचन प्रक्रिया :- खाद्य रिक्तिका के भीतर जटिल पदार्थों का विभाजन करके उन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है, जो फिर कोशिकाद्रव्य में प्रवेश कर जाते हैं  बाद में ये कोशिका द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। 

3. बहिष्करण :- अपच पदार्थ कोशिका की सतह तक पहुँचकर बाहर निष्कासित हो जाते हैं।

प्रश्न :- पैरामीशियम क्या है?

उत्तर :- पैरामीशियम एक एककोशिकीय जीव है, जिसका आकार निश्चित होता है और भोजन केवल एक विशिष्ट स्थान से प्राप्त किया जाता है। यह भोजन उस स्थान तक पक्ष्याभ की गति द्वारा पहुँचता है, जो कोशिका की पूरी सतह पर उपस्थित होते हैं।

प्रश्न :- बहु कोशिकीय जीव क्या है?

उत्तर :- बहु कोशिकीय जीव:- पोषण के लिए बहुकोशिकीय जीवों में विभिन्न अंग और अंगतंत्र होते हैं, उदाहरण के लिए, मानव में पोषण के लिए विभिन्न अंग और अंगतंत्र होते हैं जैसे कि मुंह, अन्ननलिका, और आंत

प्रश्न :- मनुष्यों में पोषण के चरण लिखिए।

उत्तर :- मनुष्यों में पोषण निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है :- 

मुखगुहा → अमाशय → क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) → बृहद्रांत्र (बड़ी आंत)

प्रश्न :- मुखगुहा में भोजन के साथ कौन सी प्रक्रिया होती है?

उत्तर :- मुखगुहा में भोजन के साथ निम्नलिखित प्रक्रिया होती है:-

मुखगुहा में भोजन को दाँतों द्वारा छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है, और लार ग्रंथियों से निकलने वाला लार या लाररस भोजन के साथ मिलकर पेशीय जिह्वा द्वारा मिश्रित किया जाता है, जिससे भोजन आसानी से आहार नलिका में क्रमिक गति से चलता है।

प्रश्न :- मनुष्य की मुखगुहा में कितनी लारग्रंथिया होती है?

उत्तर :- मनुष्य की मुखगुहा में कुल तीन जोड़ी लारग्रंथिया होती है :-

1. पैरोटिड लार ग्रंथी :- पैरोटिड ग्रंथी शरीर की सबसे बड़ी लार ग्रंथी होती हैं, यह कान के नीचे स्थित होती हैं। ये लार का स्राव करती हैं, जो भोजन को पाचने में मदद करती है। इनका स्राव शुष्क भोजन को नरम बनाकर पाचन प्रक्रिया को सरल करना होता है।

2. सबमेंडिबुलर लार ग्रंथी :- ये लार ग्रंथियाँ ठुड्डी के पास, ठीक मुँह के नीचे स्थित होती हैं। इनका मुख्य कार्य लार का स्राव करना है, जो भोजन को मुँह में घोलने और पाचन में मदद करती है। पाणी और एंजाइम्स से युक्त इन ग्रंथियों का स्राव भोजन को पचाने में सहायक होता हैं।

3. सबलिंगुअल लार ग्रंथी :- ये लार ग्रंथियाँ जीभ के नीचे स्थित होती हैं तथा लार का स्राव करती हैं, यह मुख्य तौर पर भोजन के पाचन को प्रारंभ करने में सहायता करती हैं। यह भोजन को नरम करने में तथा मुँह में चिकनाई बनाने में मदद करता है। यह ऐसा इसलिए कर पाता है, क्योंकि इनसे निकलने वाली लार में म्यूकस होता है।

प्रश्न :- टायलिन अथवा लार एमिलेस क्या है, और यह क्या करता है?

उत्तर :- टायलिन अथवा लार एमिलेस :- यह लार में मौजूद एक तरह का एंजाइम होता है तथा यह मंड को शर्करा में विभाजित करता है।

प्रश्न :- अमाशय में भोजन के साथ कौन सी प्रक्रिया होती है?

उत्तर :- अमाशय में भोजन के साथ निम्नलिखित प्रक्रिया होती है :-

1. भोजन को मुंह से आमाशय तक लाने के लिए ग्रसिका (इसोफेगस) के माध्यम से क्रमिक संकुचन की प्रक्रिया होती है। 

2. आमाशय की पेशीय भित्ति भोजन को पाचन रसों के साथ मिलाने में सहायक होती है। 

3. आमाशय की दीवार में स्थित जठर ग्रंथियाँ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), प्रोटीन पाचक एंजाइम पेप्सिन और श्लेष्मा का स्राव करती हैं, जो पाचन क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न :- जठर रसों अथवा पाचक एंजाइम के क्या कार्य होते है?

उत्तर :- जठर रसों अथवा पाचक एंजाइम के निम्नलिखित कार्य होते है नीचे कुछ पाचक एंजाइम के उदाहरण है उन्हें ध्यान से पढ़े:- 

1. हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL):- यह अमाशय में एक अम्लीय वातावरण तैयार करता है, जो निष्क्रिय पेप्सिनोजेन को सक्रिय पेप्सिन में परिवर्तित करने में मदद करता है। इसके अलावा, HCL बैक्टीरिया को नष्ट करने के रूप में जीवाणुनाशक के रूप में कार्य करता है, जिससे भोजन में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया का नाश होता है।

2. पेप्सिन एंजाइम:- पेप्सिन एंजाइम प्रोटीन के पाचन में सहायक होता है और इसे तोड़ने का काम करता है।

3. श्लेष्मा या म्यूकस :- श्लेष्मा या म्यूकस आमाशय की जठर ग्रंथियों और आंतरिक दीवार को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL) और पेप्सिन एंजाइम के हानिकारक प्रभाव से बचाने का कार्य करता है।

नोट :-

आमाशय में प्रोटीन के साथ-साथ वसा का आंशिक पाचन गैस्ट्रिक लाइपेज एंजाइम के माध्यम से होता है। इसके अलावा, मनुष्य के आमाशय में प्रतिदिन लगभग 3 लीटर जठर रस का स्राव होता है।

प्रश्न :- क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) में भोजन के साथ कौन सी प्रक्रिया होती है?

उत्तर :- क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) में भोजन के साथ निम्नलिखित प्रक्रिया होती है :-

1. आमाशय से भोजन छोटी आंत (क्षुद्रांत्र) में प्रवेश करता है, और यह प्रक्रिया अवरोधिनी पेशी द्वारा नियंत्रित की जाती है। यहाँ पर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का संपूर्ण पाचन होता है। 

2. क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) में आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय होता है, जिसे अग्नाशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए क्षारीय वातावरण यकृत द्वारा स्रावित पित्त रस से प्रदान किया जाता है।

वसा आंत में बड़े गोलिकाओं के रूप में पाया जाता है, जिस पर एंजाइमों का प्रभाव कम होता है। पित्त लवण इन गोलिकाओं को छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देता है, जिससे एंजाइम की सक्रियता बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया को इमल्सीकरण कहा जाता है।

प्रश्न :- अग्नाशयिक रस क्या कार्य करता है?

उत्तर :- अग्नाशयिक रस के कार्य :- अग्नाशय अग्नाशयिक रस का स्राव करता है, जिसमें इमल्सीकृत वसा के पाचन के लिए लाइपेज एंजाइम और प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है।

प्रश्न :- आंत्र रस क्या कार्य करता है?

उत्तर :- आंत्र रस के कार्य :- क्षुद्रांत्र की ग्रंथियाँ आंत्र रस का स्राव करती हैं, जिसमें मौजूद एंजाइम जटिल कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज में, वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में और प्रोटीन को अमिनो अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न :- क्षुद्रांत्र/छोटी आँत की संरचना को समझाइए। अथवा इसके क्या कार्य है?

उत्तर :- क्षुद्रांत्र (छोटी आंत) के कार्य है :- पचे हुए भोजन को आंत की दीवार द्वारा अवशोषित किया जाता है। क्षुद्रांत्र की आंतरिक परत पर कई अँगुली जैसे उभार होते हैं, जिन्हें दीर्घरोम कहा जाता है, ये दीर्घरोम अवशोषण के सतही क्षेत्रफल को बढ़ाते हैं। दीर्घरोम में रक्त वाहिकाओं का जाल होता है, ये जाल पचाए गए भोजन को अवशोषित करके शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाती हैं। इन कोशिकाओं से यह ऊर्जा प्राप्त करने, नए ऊतकों के निर्माण, और पुराने ऊतकों की मरम्मत में उपयोग किया जाता है।

प्रश्न :- बृहद्रांत्र बड़ी आँत की संरचना को समझाइए। अथवा इसके क्या कार्य है?

उत्तर :- बृहद्रांत्र बड़ी आँत के कार्य है :- जो भोजन पूर्ण रूप से पचा नहीं होता, उसे बृहदांत्र में भेज दिया जाता है, जहाँ पर दीर्घरोम की अधिक संख्या इस पदार्थ से पानी का अवशोषण कर लेती हैं। शेष बचा हुआ पदार्थ गुदा द्वारा शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। इस अपशिष्ट पदार्थ का उत्सर्जन गुदा अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

प्रश्न :- मनुष्यों के दाँत कितने प्रकार के होते है?

उत्तर :- एक सामान्य मनुष्य के मुँह में सामान्यतः 32 दाँत होते है। और मनुष्यों के ये 32 दाँत मुख्यत: चार प्रकार के होते है :-

1. 8 कटि या कर्तनक (Incisors) :- ये दाँत सामने के दाँत होते हैं, जो चपटे और छोटे होते हैं। इनका मुख्य कार्य भोजन को काटना होता है। मनुष्यों के मुँह में चार कटि दाँत होते हैं (दो ऊपर और दो नीचे)। 

2. 4 द्वारदंत या भेदक (Canines) :- ये नुकीले दाँत होते हैं, इनका कार्य भोजन को फाड़ने का होता है। मनुष्यों के मुँह में चार द्वारदंत होते हैं (दो ऊपर और दो नीचे)।

3. 8 प्रीमोलर्स या अग्रचर्वणक (Premolars) :- ये दाँत पृष्ठीय भाग में होते हैं और इनका कार्य भोजन को चबाना और कुचलना होता है। मनुष्यों के मुँह में आठ प्रीमोलर्स होते हैं (चार ऊपर और चार नीचे)।

4. 12 मोलर्स या चर्वणक (Molars) :- ये बड़े और चौड़े दाँत होते हैं, जो भोजन को चबाने और पीसने का कार्य करते हैं। मनुष्यों के मुँह में 12 मोलर्स होते हैं (छह ऊपर और छह नीचे)।

नोट :-

12 मोलर्स या चर्वणक (Molars) में 4 आकुंश दाँत (Wisdom teeth) होते हैं। इन्हें “बुद्धि के दाँत” भी कहा जाता है। इन दाँतों का कार्य भोजन को चबाना होता है, लेकिन इनका आकार और उपयोग समय के साथ कम हो गया है।

प्रश्न :- दंतक्षरण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- मुँह में कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन लार के द्वारा शर्करा में होता है। इसके बाद, कुछ प्रकार के जिवाणु इन शर्कराओं पर क्रिया करके अम्ल का निर्माण करते हैं, जो दांत के एनामेल (ऊपरी परत) को प्रभावित करके उसे कमजोर कर देते हैं। कई जिवाणु खाद्य कणों के साथ मिलकर दांतों के ऊपर एक पतला सा परत (दंत प्लाक) बना लेते हैं, जो समय के साथ दांतों को ढक लेता है। यदि इसे नियमित रूप से ब्रश से साफ नहीं किया जाता है, तो यह प्लाक दांतों के भीतरी भाग (मज्जा) में पहुँचकर जलन का कारण बन जाता है, जिससे दंतक्षरण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।

प्रश्न :- कोशिकीय श्वसन क्या है, और यह शरीर में ऊर्जा उत्पादन में कैसे सहायता करता है?

उत्तर :- कोशिकीय श्वसन :- पोषण की प्रक्रिया में शरीर के माध्यम से ग्रहण की गई खाद्य सामग्री कोशिकाओं द्वारा उपयोग की जाती है, जिससे विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन की प्रक्रिया होती है, जिसे कोशिकीय श्वसन कहा जाता है।

प्रश्न :- श्वसन कितने प्रकार के होते है?

उत्तर :- श्वसन दो प्रकार के होते है :- 

1. वायवीय श्वसन

2. अवायवीय श्वसन

प्रश्न :- वायवीय श्वसन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- वायवीय श्वसन :- कोशिकाओं के द्रव्य में स्थित माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) में पायरूवेट (Pyruvate) का विखंडन तब होता है, जब ऑक्सीजन उपस्थित होती है। इस प्रक्रिया को वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration) कहा जाता है। इस अभिक्रिया के परिणामस्वरूप जल, कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो ATP (Adenosine Triphosphate) के रूप में संचित होती है। वायवीय श्वसन में अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा का उत्पादन होता है।

प्रश्न :- अवायवीय श्वसन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- अवायवीय श्वसन :- कोशिका द्रव्य में, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में, ग्लूकोज का आंशिक रूप से विखंडन एंजाइमों की सहायता से होता है। इस प्रक्रिया को अवायवीय श्वसन कहा जाता है। इसके परिणामस्वरूप एथेनॉल (Ethanol), लैक्टिक एसिड (Lactic Acid), और  कार्बन डाई ऑक्साइड (CO) का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा का कुछ हिस्सा प्राप्त होता है, और इसके दौरान दो अणु CO उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न :- वायवीय श्वसन तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है?

उत्तर :- वायवीय श्वसन तथा अवायवीय श्वसन में निम्नलिखित अंतर है :-

वायवीय श्वसन तथा अवायवीय श्वसन में निम्नलिखित अंतर है :-

वायवीय श्वसन

अवायवीय श्वसन

वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है।

अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।

ग्लूकोज का पूर्ण रूप से विघटन होता है। 

परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और ऊर्जा उत्पन्न होती है। 

ग्लूकोज का आंशिक रूप से विघटन होता है।

इस प्रक्रिया में एथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा उत्पन्न होती है।

यह प्रक्रिया कोशिका के द्रव्य और माइटोकॉन्ड्रिया में होती है।

यह प्रक्रिया केवल कोशिका के द्रव्य में होता है। 

इस प्रकार के श्वसन में अधिक ऊर्जा का उत्पादन होता है, जो लगभग 36 ATP तक हो सकता है।

इस प्रकार के श्वसन में ऊर्जा का उत्पादन कम होता है, जो केवल 2 ATP तक सीमित होता है।

उदाहरण के लिए :-  मानव

उदाहरण के लिए :- यीस्ट

नोट :-

1. कोशिकीय श्वसन के कारण उत्पन्न ऊर्जा ATP के रूप में संचित होती है, जिसे कोशिका अपनी कार्यप्रणाली के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल करती है।

2. ATP का पूरा नाम एडिनोसीन ट्राईफॉस्फेट  (Adenosine Triphosphate) है। कोशिकीय श्वसन एक प्रकार की आंतरिक ऊष्मा या उष्माक्षेपी प्रक्रिया है।

प्रश्न :- पौधे में रात और दिन की घटनाओं में अंतर बताइए।

उत्तर :- पौधे में रात और दिन की घटनाओं में निम्नलिखित अंतर होता है:- 

पौधे में रात में घटना

पौधे में दिन में घटना

रात्रि के समय प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया नहीं होती, इसलिए कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन मुख्य गतिविधि बन जाती है।

दिन में श्वसन के दौरान उत्पन्न होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)का उपयोग प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया में होता है, जिसके परिणामस्वरूप मुख्य रूप से ऑक्सीजन (O2) का उत्सर्जन होता है।

प्रश्न :- जलीय जीवों में श्वसन प्रक्रिया कैसे होती है, समझाइए।

उत्तर :- जलीय जीवों में श्वसन: जलीय जीव जल में घुले हुए ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। चूंकि जल में ऑक्सीजन की मात्रा भूमि (स्थलीय) जीवों की तुलना में कम होती है, इसलिए इनकी श्वास दर भी स्थलीय जीवों से कम होती है।

उदाहरण :-

मछली जल को अपने मुँह से अंदर लेकर उसे जबरदस्ती गिल्स (क्लोम) तक पहुँचा देती है, जहाँ जल में घुले हुए ऑक्सीजन (O2) को रक्त (रूधिर) द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।

प्रश्न :- निम्नलिखित जीवों के श्वसन अंगों के नाम बताइए।

1. मनुष्य

2. मच्छर

3. मछली

4. केंचुआ

उत्तर :- उपरोक्त जीवों के श्वसन अंगों के नाम निम्नलिखित है :- 

1. मनुष्य → श्वसन अंग → फेफड़ा 

2. मच्छर → श्वसन अंग → श्वासनली या ट्रेकिया 

3. मछली → श्वसन अंग → गलफड़ या गिल्स 

4. केंचुआ → श्वसन अंग → त्वचा

प्रश्न :- शरीर में श्वसन तंत्र के द्वारा वायु का प्रवाह किस प्रकार होता है? इस प्रक्रिया को क्रमबद्ध रूप से समझाइए।

उत्तर :- शरीर में श्वसन तंत्र के द्वारा वायु का प्रवाह का क्रमबद्ध रूप निम्नलिखित है:-

नासिका → ग्रसनी → कंठ → श्वास नली (ट्रेकिया) → श्वसनिका (ब्रोंकस) → फेफड़े → कूपिका कोशिकाएं → रुधिर वाहिकाएं (ब्लड वेसेल्स) 

आइए, इसे व्याख्यात्मक रूप में समझते हैं :-

मानव श्वसन तंत्र में हवा नासिका द्वारा प्रवेश करती है, जो आगे ग्रसनी में जाती है। कंठ से होते हुए यह श्वास नली (ट्रेकिया) में प्रवेश करती है। इसके बाद यह हवा श्वसनिका (ब्रोंकस) से होती हुई फेफड़ों तक पहुंच जाती है। वहां से हवा कूपिका कोशिकाओं तक पहुंचती है, और अंत में रुधिर वाहिकाओं (ब्लड वेसेल्स) में रक्त का संचार होता है।

नोट :- 

नाक में मौजूद श्लेष्मा और सूक्ष्म बाल  वायु के साथ प्रवेश करने वाली अशुद्धियों को अवरुद्ध कर लेते हैं। ये अशुद्धियाँ धूल, मिट्टी, बैक्टीरिया, परागकण, राख आदि के रूप में हो सकते हैं।

प्रश्न :- ग्रसनी क्या है?

उत्तर :- ग्रसनी:- एक ऐसा मार्ग है जो श्वसन तंत्र एवं पाचन तंत्र दोनों तंत्रों में काम आता है।

प्रश्न :- कंठ अथवा स्वर यंत्र  क्या है?

उत्तर :- कंठ अथवा स्वर यंत्र:-  श्वास नली के ऊपर और ग्रसिका के ठीक सामने स्थित यह नलिका वयस्कों में करीब 5 सेंटीमीटर लंबी होती है। कंठ में उपास्थि के वलय पाए जाते हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि वायु का मार्ग अवरुद्ध न हो।

प्रश्न :- फुफ्फुस (फेफड़े) में गैसों का विनिमय कैसे होता है? कूपिका और रुधिर वाहिकाओं का इसमें क्या योगदान होता है?

उत्तर :- फेफड़ों के भीतर वायुमार्ग छोटी-छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते हैं, जो अंत में गुब्बारे जैसी संरचनाओं में बदल जाते हैं, जिन्हें कूपिका कहा जाता है। कूपिका ऐसी सतह प्रदान करती है, जो गैसों के आदान-प्रदान के लिए उपयुक्त होती है। कूपिका की दीवारों में रुधिर वाहिकाओं का विस्तृत जाल पाया जाता है।

प्रश्न :- श्वास लेने की प्रक्रिया में पसलियों और डायाफ्राम की भूमिका क्या होती है? इसके अलावा, कूपिकाओं में गैसों का आदान-प्रदान किस प्रकार होता है?

उत्तर :- श्वास अंदर लेते समय हमारी पसलियाँ ऊपर की ओर उठती हैं और डायाफ्राम चपटा हो जाता है, जिसके कारण वक्षगुहिका का आकार बढ़ जाता है। इस परिवर्तन के कारण वायु फेफड़ों में खींची जाती है और कूपिकाओं में भर जाती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लेकर आता है। इसके बाद, कूपिकाओं में मौजूद रुधिर, ऑक्सीजन को ग्रहण करके उसे शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचा देता है।

प्रश्न :- मानव श्वसन क्रिया में अंतः श्वसन और उच्छ्वसन की प्रक्रिया के दौरान शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन करें और यह बताएं कि कैसे वायु का प्रवाह फेफड़ों में होता है।

उत्तर :- अंतः श्वसन के दौरान तथा उच्छ्वसन के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तन निम्नलिखित है :-

अंतः श्वसन के दौरान 

उच्छ्वसन के दौरान 

1. वृक्षीय गुहा में विस्तार होता है।

1. वृक्षीय गुहा अपने पूर्ववर्ती आकार में लौट आती है।

2. पसलियों से जुड़ी मांसपेशियां संकुचित हो जाती हैं।

2. पसलियों से जुड़ी मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं।

3. वक्ष ऊपर की दिशा में और बाहर की ओर बढ़ता है।

3. वक्ष अपने सामान्य स्थिति में पुनः लौटता है।

4. गुहा के अंदर वायु का दबाव घट जाता है, जिससे वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।

4. गुहा में वायु का दबाव बढ़ जाता है, जिसके कारण वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) फेफड़ों से बाहर निकल जाती है।

प्रश्न :- संवहन तंत्र मनुष्य के शरीर में किस प्रकार से कार्य करता है?

उत्तर :- संवहन तंत्र :– मनुष्य में भोजन, ऑक्सीजन तथा अन्य जरूरी तत्वों की निरंतर आपूर्ति करता है।

प्रश्न :- मानव के संवहन तंत्र / वहन तंत्र के प्रमुख घटक कौन से हैं?

उत्तर :- मानव के संवहन तंत्र के प्रमुख घटक निम्नलिखित है :-

1. हृदय

2. रक्त नलिकाएं (धमनी और शिरा)

3. वहन माध्यम (रक्त और लसीका)

प्रश्न :-  हृदय की संरचना और कार्यों का वर्णन करें। इसमें हृदय के विभाजन, रक्त प्रवाह और वाल्व का महत्व भी समझाएं।

उत्तर :- हृदय की संरचना :-  हमारा पंप, हृदय एक पेशीय अंग होता है, जो आकार में मुट्ठी जितना होता है।

हृदय का कार्य :-  यह शरीर में ऑक्सीजन से भरपूर रक्त को कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त से मिलाकर उसकी गति को नियंत्रित करने के लिए कई हिस्सों में विभाजित होता है।

हृदय का विभाजन :- हृदय का दाएं और बाएं हिस्से का विभाजन ऑक्सीजनयुक्त और निष्क्रिय रक्त को आपस में मिलने से रोकता है।

हृदय द्वारा रक्त प्रवाह :- मानव हृदय एक पंप की तरह कार्य करता है, जो पूरे शरीर में रक्त का संचार करता है।

हृदय में वाल्व का महत्व :- हृदय में स्थित वाल्व रक्त के प्रवाह को उल्टी दिशा में जाने से रोकने का कार्य करते हैं।

प्रश्न :-  रक्तदाब क्या होता है?

उत्तर :- वह दबाव जो रुधिर वाहिकाओं की भित्ति पर पड़ता है, उसे रक्तदाब कहा जाता है।

प्रश्न :-  रक्त नलिकाएँ, धमनी तथा शिरा में अंतर बताइए।

उत्तर :- रक्त नलिकाएँ, धमनी तथा शिरा में अंतर निम्नलिखित है :-

धमनी

शिरा

धमनी वह रक्त वाहिकाएं हैं जो रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाती हैं।

शिराएं विभिन्न अंगों से ऑक्सीजन रहित रक्त को एकत्रित करके हृदय तक वापस लाती हैं। एकमात्र अपवाद फेफड़ों की शिराएं हैं।

धमनी की भित्ति लचीली और मोटी होती हैं, क्योंकि रक्त हृदय से उच्च दबाव के साथ प्रवाहित होता है।

शिराओं की दीवारें पतली, कमजोर और कम लचीली होती हैं।

इनमें वाल्व नहीं होते।

शिराओं में वाल्व पाए जाते हैं, जो रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।

ये सतह पर नहीं होतीं, बल्कि शरीर के अंदर ऊतकों के नीचे स्थित होती हैं।

ये शिराएं सामान्यतः शरीर की सतह के करीब होती हैं।

प्रश्न :-  लसीका क्या होता है, और यह किस प्रकार का तरल उत्तक है?

उत्तर :- यह एक प्रकार का तरल उत्तक होता है, जो रक्त के प्लाज्मा की तरह होता है, लेकिन इसमें कुछ मात्रा में प्रोटीन (मोटीन) होते हैं। लसीका शरीर में तरल पदार्थों के संचलन (वहन) में मदद करता है और इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पोषक तत्व पहुँचाने में सहायता मिलती है।

 

प्रश्न :-  पादपों में परिवहन कौन सा तंत्र करता है?

उत्तर :- पादपों में परिवहन :- पादप तंत्र का एक हिस्सा, जिसे ज़ाइलम (Xylem) कहा जाता है, मृदा से जल और खनिज लवणों को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है। वहीं, फ्लोएम (Phloem) पत्तियों में संश्लेषित कार्बोहाइड्रेट्स और अन्य उत्पादों को पौधे के अन्य हिस्सों में पहुंचाता है। जल का मृदा से जड़ों तक प्रवेश जड़ और मृदा के बीच आयन साद्रण में अंतर के कारण होता है। इस प्रक्रिया से एक जल स्तंभ बनता है, जो जल को ऊपर की ओर खींचता है। यह दाब जल को पौधों के ऊँचे हिस्सों, जैसे पत्तियों और तनों तक पहुँचाता है। इस जल का एक हिस्सा पत्तियों से वाष्प के रूप में वातावरण में निकल जाता है, जिसे वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहा जाता है। यह प्रक्रिया पादपों को जल अवशोषण, खनिज लवणों की उपरिमुखी गति, और तापमान नियंत्रण में सहायता करती है।

प्रश्न :-  पौधों में भोजन और अन्य पदार्थों का स्थानांतरण किस प्रक्रिया के द्वारा होता है?

उत्तर :- प्रकाश संश्लेषण के द्वारा उत्पन्न विलेय पदार्थों का परिवहन स्थानांतरण कहलाता है, जो फ्लोएम ऊतक के माध्यम से होता है।

1. यह स्थानांतरण पत्तियों से पौधे के अन्य हिस्सों में उपरिमुखी (ऊपर की दिशा में) और अधोमुखी (नीचे की दिशा में) दोनों दिशाओं में होता है।

2. फ्लोएम ऊतक द्वारा यह स्थानांतरण ऊर्जा की मदद से संपन्न होता है।

उदाहरण :- 

सुक्रोज फ्लोएम में ए.टी.पी. (ATP) ऊर्जा के माध्यम से परासरण बल (osmotic pressure) द्वारा स्थानांतरित होता है।

प्रश्न :-  उत्सर्जन क्या होता है, और यह किस प्रकार की जैविक प्रक्रिया है?

उत्तर :- उत्सर्जन :-  वह जैविक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से जीव अपनी उपापचयी क्रियाओं के दौरान उत्पन्न हानिकारक नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालते हैं।

एककोशिकीय जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को अपनी कोशिका की सतह से पानी में घोलकर निष्कासित कर देते हैं।

प्रश्न :-  मानव के उत्सर्जन तंत्र में कौन-कौन से अंग शामिल होते हैं?

उत्तर :- मानव में उत्सर्जन तंत्र में निम्नलिखित अंग शामिल होते हैं :-

मानव के उत्सर्जन तंत्र में दो वृक्क (किडनी), दो मूत्रवाहिनियाँ, एक मूत्राशय और एक मूत्रमार्ग शामिल होते हैं।

नोट :- 

वृक्क रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर, उदर में स्थित होते हैं। मूत्र बनने के बाद, यह मूत्रवाहिनी के माध्यम से मूत्राशय में पहुँचता है, जहाँ यह एकत्रित होता है। मूत्र तब तक मूत्राशय में रहता है जब तक कि मूत्रमार्ग से बाहर नहीं निकलता है।

प्रश्न :-  मूत्र बनने के क्या उद्देश्य होते है?

उत्तर :- मूत्र बनने का मुख्य उद्देश्य रक्त से हानिकारक और अनुपयोगी अपशिष्ट (वर्ज्य) पदार्थों को छानकर शरीर से बाहर निकालना होता है।

प्रश्न :-  वृक्क में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया को समझाइए।

उत्तर :- वृक्क में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया निम्नलिखित है :-

1. केशिका गुच्छ (Glomerulus) :- रक्त से अपशिष्ट पदार्थों और पानी का फिल्ट्रेशन होता है।

2. बोमन संपुट  (Bowman’s Capsule) :- फिल्टर किया हुआ रक्त प्लाज्मा यहां एकत्रित होता है।

3. नलिकाकार भाग: यह वह हिस्सा है जहां प्राथमिक मूत्र का संशोधन होता है, और आवश्यक पदार्थों का पुनः अवशोषण होता है।

4. संग्राहक वाहिनी  (Collecting Duct) :- मूत्र एकत्रित होकर मूत्रवाहिनी में पहुंचता है।

नोट :-

नलिकाकार भाग के तीन मुख्य हिस्से

1. प्रोक्सिमल क्यूबॉयडल ट्यूब (Proximal Convoluted Tubule (PCT)) :- आवश्यक पदार्थ (जैसे ग्लूकोज, आयन) पुनः अवशोषित होते हैं।

2. लूप ऑफ हेनले (Loop of Henle) :- पानी और आयन का पुनः अवशोषण होता है।

3. डिस्टल क्यूबॉयडल ट्यूब (Distal Convoluted Tubule (DCT)) :- अतिरिक्त पदार्थों का निष्कासन होता है।

प्रश्न :-  वृक्काणु क्या है?

उत्तर :- वृक्काणु :- वृक्क का क्रियात्मक और संरचनात्मक  घटक वृक्काणु होता है।

प्रश्न :-  वृक्क में उत्सर्जन की क्रियाविधि को विस्तार से समझाइए।

उत्तर :- 1. केशिका गुच्छ से निस्पंदन :- वृक्क द्वारा धमनी की शाखा वृक्काणु में प्रवेश करने से, जल, लवण, अमीनो एसिड, ग्लूकोज, तथा नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ कोशिका गुच्छ के माध्यम से छनकर बोमन कैप्सूल में चले जाते हैं।

2. वर्णात्मक पुनः अवशोषण :-  वृक्काणु के नलिकाओं में, शरीर के लिए आवश्यक पदार्थ जैसे जल, लवण,  ग्लूकोज और  अमीनो एसिड का पुनः अवशोषण किया जाता है।
3. नलिका स्रावण की प्रक्रिया :- यूरिया, अतिरिक्त लवण और जल जैसे अपशिष्ट पदार्थ वृक्काणु के नलिकाकार भाग के अंत में जमा होते हैं, जिससे मूत्र बनता है। यह मूत्र संग्राहक वाहिनी और मूत्रवाहिनी के माध्यम से मूत्राशय में पहुंचता है, जहां वह संग्रहित होता है और मूत्राशय के दाब से मूत्रमार्ग के द्वारा बाहर निकलता है।

प्रश्न :-  कृत्रिम वृक्क (डायलिसिस) क्या है इसकी प्रक्रिया को समझाइए और इसका कार्य क्या है?

उत्तर :- कृत्रिम वृक्क (डायलिसिस) अथवा अपोहन :-

1. यह एक यंत्र है जिसका उपयोग रोगियों के रक्त से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों को निकालने के लिए किया जाता है, जैसा कि वास्तविक वृक्क करता है।

2. एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में प्रतिदिन लगभग 180 लीटर प्रारंभिक निस्यंदन वृक्क द्वारा किया जाता है, जिसमें से केवल 1.2 लीटर मूत्र के रूप में उत्सर्जित होता है, और बचा हुआ निस्यंदन वृक्क नलिकाओं में दोबारा से अवशोषित हो जाता है।

प्रश्न :-  पादपों में उत्सर्जन की प्रक्रिया को समझाइए और इसके विभिन्न रूपों के बारे में बताइए।

उत्तर :- पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाने के लिए वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। कई पादपों में अपशिष्ट (वर्ज्य) पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में एकत्रित रहते हैं। कुछ अपशिष्ट (वर्ज्य) पदार्थ, जैसे रेजिन और गोंद, पुराने जाइलम में जमा होते हैं। पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को आसपास की भूमि में छोड़ते हैं।

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