Class 10 history Notes in hindI Chapter - 1
CLASS 10 HISTORY NOTES IN HINDI
CHAPTER 1 : यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
प्रश्न :- राष्ट्र किसे कहते हैं? अरनेस्ट रेनन के अनुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- राष्ट्र :- अरनेस्ट रेनन के अनुसार राष्ट्र वह क्षेत्र है, जो समान भाषा, नस्ल और धर्म से निर्मित होता है। एक राष्ट्र लंबे प्रयासों, त्याग और निष्ठा का चरम बिंदु होता है।
राष्ट्र के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. राष्ट्र केवल भौगोलिक सीमा से नहीं बनता।
2. इसमें लोगों की साझा भाषा, संस्कृति, धर्म और इतिहास महत्त्वपूर्ण होते हैं।
3. राष्ट्र बनने के लिए लोगों में एकता, त्याग और समर्पण की भावना होनी चाहिए।
4. यह जनमानस की सामूहिक निष्ठा का परिणाम होता है।
नोट :-
भारत एक राष्ट्र है, जहाँ विभिन्न भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हुए भी एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना से जुड़े हुए हैं।
प्रश्न :- राष्ट्रवाद किसे कहते हैं?
उत्तर :- राष्ट्रवाद :- अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को राष्ट्रवाद कहते हैं। यह वह विचार है, जो लोगों को अपने देश की स्वतंत्रता, एकता और विकास के लिए प्रेरित करता है।
राष्ट्रवाद के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. राष्ट्रवाद में अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा और गर्व की भावना होती है।
2. यह लोगों को स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के लिए संघर्ष करने की शक्ति देता है।
3. राष्ट्रवाद लोगों को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक एकता का बोध कराता है।
4. इससे समाज में त्याग, बलिदान और समर्पण की भावना उत्पन्न होती है।
उदाहरण :-
भारत में स्वतंत्रता संग्राम के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में लोगों में जागा हुआ स्वदेश प्रेम और अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष राष्ट्रवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रश्न :- नेपोलियन कौन था?
उत्तर :- नेपोलियन बोनापार्ट :- फ्रांस का एक प्रसिद्ध शासक और सेनापति था। उसका जन्म 15 अगस्त 1769 को हुआ था। उसने अपने साहस और नेतृत्व क्षमता के बल पर यूरोप के इतिहास को गहराई से प्रभावित किया।
नेपोलियन के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. नेपोलियन ने बहुत कम उम्र में ही सेना में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया।
2. 24 वर्ष की आयु में वह सेनापति बन गया।
3. उसने फ्रांसीसी सेना को कई युद्धों में विजय दिलाई।
4. उसकी सफलताओं ने उसे लोकप्रिय बनाया और अंततः वह फ्रांस का सम्राट बन गया।
नोट :-
नेपोलियन ने 1799 में फ्रांस की सत्ता अपने हाथ में ली और आने वाले वर्षों में यूरोप के बड़े हिस्से पर प्रभुत्व स्थापित किया, जिसे इतिहास में “नेपोलियन युग” कहा जाता है।
प्रश्न :- उदारवाद किसे कहते हैं?
उत्तर :- उदारवाद :- उदारवाद या Liberalism शब्द लैटिन भाषा के “Liber” शब्द से बना है, जिसका अर्थ है स्वतंत्रता। यह विचारधारा व्यक्ति की आज़ादी और कानून के समक्ष समानता पर आधारित है।
उदारवाद के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. उदारवाद का अर्थ है व्यक्ति को स्वतंत्रता प्रदान करना।
2. इसके अनुसार सभी को कानून के समक्ष समान अधिकार मिलना चाहिए।
3. यह शासन में निरंकुशता के विरुद्ध और लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्ष में खड़ा होता है।
4. नए मध्यम वर्ग के लिए उदारवाद का विशेष महत्व था, क्योंकि वे समान अवसर और अधिकार चाहते थे।
नोट :-
19वीं शताब्दी के यूरोप में उदारवाद ने लोकतांत्रिक सरकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समान अधिकारों की माँग को मज़बूती दी।
प्रश्न :- निरंकुशवाद किसे कहते हैं?
उत्तर :- निरंकुशवाद :- एक ऐसी शासन व्यवस्था है, जिसमें शासक की सत्ता पर किसी प्रकार का नियंत्रण या प्रतिबंध नहीं होता।
निरंकुशवाद के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. इसमें शासक के आदेश को सर्वोच्च माना जाता है।
2. जनता को शासन में भागीदारी का अधिकार नहीं मिलता।
3. कानून और नियम शासक की इच्छा पर निर्भर होते हैं।
4. यह व्यवस्था लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विपरीत मानी जाती है।
उदाहरण :-
फ्रांस के लुई चौदहवें का शासन निरंकुशवाद का प्रसिद्ध उदाहरण है, जहाँ उसने स्वयं को “मैं ही राज्य हूँ” कहकर अपनी असीमित सत्ता को व्यक्त किया था।
प्रश्न :- जनमत संग्रह किसे कहते हैं?
उत्तर :- जनमत संग्रह :- एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी क्षेत्र की पूरी जनता से प्रत्यक्ष मतदान कराकर यह निर्णय लिया जाता है कि किसी प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या अस्वीकार।
जनमत संग्रह के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. यह लोकतंत्र की प्रत्यक्ष भागीदारी का उदाहरण है।
2. इसमें जनता स्वयं किसी प्रस्ताव पर अपनी राय देती है।
3. जनमत संग्रह के परिणाम को अंतिम माना जाता है।
4. इससे जनता की इच्छा को स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है।
उदाहरण :-
2016 में ब्रिटेन में आयोजित जनमत संग्रह में जनता ने “ब्रेक्ज़िट” यानी यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान किया।
प्रश्न :- यूटोपिया (कल्पनादर्श) किसे कहते हैं?
उत्तर :- यूटोपिया या कल्पनादर्श :- एक ऐसे समाज की कल्पना है, जो पूरी तरह आदर्श और उत्तम हो, लेकिन वास्तविक जीवन में उसका साकार होना लगभग असंभव होता है।
यूटोपिया (कल्पनादर्श) के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. इसमें समाज को बिना किसी कमी या दोष के सोचा जाता है।
2. यह केवल कल्पना पर आधारित होता है।
3. यूटोपिया का विचार लोगों को बेहतर समाज बनाने की प्रेरणा देता है।
4. इसे व्यवहारिक रूप से लागू करना बहुत कठिन होता है।
नोट :-
थॉमस मूर की पुस्तक “यूटोपिया” (1516 ई.) में एक ऐसे आदर्श समाज का वर्णन मिलता है, जहाँ सब समान और सुखी होते हैं।
प्रश्न :- रूमानीवाद किसे कहते हैं?
उत्तर :- रूमानीवाद :- एक सांस्कृतिक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य लोगों में विशेष प्रकार की राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक एकता का विकास करना था।
रूमानीवाद के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. इसमें कला, साहित्य और संगीत के माध्यम से राष्ट्रप्रेम को जागृत किया गया।
2. यह आंदोलन भावनाओं और कल्पनाओं को महत्व देता था।
3. रूमानीवाद ने इतिहास और लोक-संस्कृति के गौरव को सामने लाने का काम किया।
4. इसने यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना को बल प्रदान किया।
उदाहरण :-
जर्मनी और इटली में रूमानी साहित्य और लोकगीतों ने लोगों को राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न :- जुंकर्स किसे कहते हैं?
उत्तर :- जुंकर्स :- प्रशा की एक सामाजिक श्रेणी थी, जिसमें बड़े-बड़े ज़मींदार शामिल थे। वे समाज और राजनीति दोनों में प्रभावशाली माने जाते थे।
जुंकर्स के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. जुंकर्स मुख्य रूप से भूमि के मालिक और धनवान वर्ग थे।
2. इनका प्रशा की राजनीति और सेना पर गहरा प्रभाव था।
3. यह वर्ग परंपरागत और रूढ़िवादी विचारधारा का समर्थक था।
4. जुंकर्स ने प्रशा को एक सशक्त साम्राज्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नोट :-
19वीं शताब्दी में प्रशा के जुंकर्स वर्ग ने बिस्मार्क जैसे नेताओं को सहयोग देकर जर्मनी के एकीकरण में योगदान दिया।
प्रश्न :- राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण कौन-कौन से थे?
उत्तर :- राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित है :-
1. निरंकुश शासन व्यवस्था :– शासकों की असीमित सत्ता ने जनता में असंतोष पैदा किया।
2. उदारवादी विचारों का प्रसार :– स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों की माँग ने राष्ट्रवाद को बल दिया।
3. स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व का नारा :– फ्रांसीसी क्रांति के नारों ने पूरे यूरोप को प्रभावित किया।
4. शिक्षित मध्य वर्ग की भूमिका :– इस वर्ग ने राष्ट्रवाद के लिए संगठित आंदोलनों और विचारधारा का नेतृत्व किया।
उदाहरण :-
फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) को यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय का सबसे बड़ा कारण माना जाता है, क्योंकि इससे स्वतंत्रता और समानता की भावना अन्य देशों तक फैली।
प्रश्न :- यूरोप में राष्ट्रवाद का क्रमिक विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर :- यूरोप में राष्ट्रवाद का क्रमिक विकास निम्नलिखित है :-
1. फ्रांसीसी क्रांति (1789) :– स्वतंत्रता और समानता के विचारों का प्रसार।
2. नागरिक संहिता (1804) :– कानून के समक्ष समानता को स्थापित करना।
3. वियना की संधि (1815) :– यूरोप में राजनीतिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास।
4. उदारवादियों की क्रांतियाँ (1848) :– लोगों में लोकतांत्रिक अधिकारों और राष्ट्रीय चेतना का विकास।
5. जर्मनी का एकीकरण (1866-1871) :– विभिन्न राज्यों का एक राष्ट्र में समेकन।
6. इटली का एकीकरण (1859-1871) :– विभाजित राज्यों का एकीकृत राष्ट्र में रूपांतरण।
नोट :-
19वीं शताब्दी में जर्मनी और इटली के एकीकरण ने यूरोप में राष्ट्रवाद की शक्ति और प्रभाव को स्पष्ट रूप से दिखाया।
प्रश्न :- यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर :- किसी भी राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में सामूहिक पहचान, संस्कृति और परंपराओं की समानता आवश्यक होती है। यूरोप में विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समाज और भाषाएँ थीं, जिससे राष्ट्रवादी चेतना विकसित करने में समय लगा।
यूरोप में राष्ट्रवाद के निर्माण के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. यूरोप में कई अलग-अलग समाज मौजूद थे, जिनकी भाषा और संस्कृति भिन्न थी।
2. इस विविधता के बावजूद लोग राष्ट्रवादी विचारधारा के माध्यम से एक साझा पहचान की ओर बढ़े।
उदाहरण :-
हैब्सबर्ग साम्राज्य में कई भाषाओं और संस्कृतियों के लोग रहने के बावजूद, जर्मन राष्ट्रवाद ने उन्हें सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से एकजुट करने का प्रयास किया।
नोट :-
हैब्सबर्ग साम्राज्य में जर्मन, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इटली जैसी विभिन्न भाषाएँ बोली जाती थीं।
प्रश्न :- 19वीं शताब्दी से पहले यूरोपीय समाज की संरचना कैसी थी?
उत्तर :- 19वीं शताब्दी से पहले यूरोपीय समाज मुख्य रूप से असमान रूप से दो प्रमुख वर्गों में विभाजित था।
1. उच्च वर्ग (कुलीन वर्ग) :– इसमें राजा, रईस और अमीर ज़मींदार शामिल थे।
2. निम्न वर्ग (कृषक वर्ग) :– इसमें सामान्य लोग, मजदूर और किसानों का समूह था।
प्रश्न :- उच्च वर्ग (कुलीन वर्ग) की विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर :- उच्च वर्ग :- जिसे कुलीन वर्ग भी कहा जाता था, समाज में सबसे अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली वर्ग था।
उच्च वर्ग (कुलीन वर्ग) की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ थी :-
1. उच्च वर्ग की जनसंख्या कम थी।
2. यह वर्ग समाज में वर्चस्व जमाने वाला था।
3. इसमें ज़मींदार शामिल थे, जो बड़े-बड़े खेतों और संपत्ति के मालिक होते थे।
4. उन्हें समाज और शासन में सभी अधिकार प्राप्त थे।
प्रश्न :- निम्न वर्ग (कृषक वर्ग) की विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर :- निम्न वर्ग :- जिसे कृषक वर्ग कहा जाता था, समाज का बड़ा और कमज़ोर हिस्सा था।
निम्न वर्ग (कृषक वर्ग) की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ थी :-
1. इस वर्ग की जनसंख्या अधिक थी।
2. इसमें ज़मीन हीन लोग शामिल थे, जो या तो जमीन के बिना रहते थे या किराए पर खेती करते थे।
3. उन्हें समाज और शासन में कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते थे।
4. यूरोपीय समाज असमान रूप से विभाजित था।
5. कृषक वर्ग के लोग ज़मीन के मालिक नहीं होते थे और कुलीन वर्ग के अधीन रहते थे।
नोट :-
19वीं सदी के बाद एक नया वर्ग उभरा जिसे नया मध्यवर्ग कहा गया।
प्रश्न :- नया मध्यवर्ग कौन था और इसकी विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर :- नया मध्यवर्ग :- 19वीं सदी में यूरोप में उभरा और इसमें मुख्य रूप से पढ़े-लिखे लोग शामिल थे।
नये मध्यवर्ग की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. इसमें शिक्षक, डॉक्टर, उद्योगपति, व्यापारी और अन्य शिक्षित पेशेवर शामिल थे।
2. पढ़े-लिखे होने के कारण उन्होंने समान कानून और न्याय की मांग की।
3. इस वर्ग ने उदारवादी और राष्ट्रवादी विचारों का समर्थन किया।
4. नया मध्यवर्ग समाज में राजनीतिक और आर्थिक बदलावों का प्रमुख प्रेरक बन गया।
प्रश्न :- उदारवादी राष्ट्रवाद क्या था और इसके प्रभाव क्या रहे?
उत्तर :- उदारवादी राष्ट्रवाद :- एक ऐसा विचार था जिसने समान अधिकार, स्वतंत्रता और कानून के समक्ष समानता की भावना को बढ़ावा दिया। इसके चलते राष्ट्रवाद के विचार पूरे यूरोप में फैलने लगे और निम्नलिखित राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सुधार हुए :-
1. 1789 में फ्रांस की क्रांति उदारवादी राष्ट्रवाद के प्रभाव से हुई।
2. राज्य के अंदर नियंत्रण (चीज़ों और पूंजी के आगमन पर) को खत्म कर दिया गया।
3. अलग-अलग राज्यों के बीच सीमा शुल्क (कस्टम्स) को समाप्त करने के लिए “जॉलबेराइन” (Zollverein) संगठन बनाया गया।
4. शुल्क अवरोध हटाकर आर्थिक एकता को बढ़ावा दिया गया।
5. मुद्राओं की संख्या को घटाकर दो कर दिया गया, जबकि पहले 30 से अधिक मुद्राएँ थीं।
6. नेपोलियन के समय केवल धनवान पुरुष ही मतदान कर सकते थे।
उदाहरण :-
जर्मनी में जॉलबेराइन (Zollverein) ने अलग-अलग राज्यों के बीच व्यापार को सरल बनाकर आर्थिक एकता और उदारवादी राष्ट्रवाद को मजबूत किया।
प्रश्न :- जॉलबेराइन (Zollverein) क्या था?
उत्तर :- जॉलबेराइन :- एक जर्मन शुल्क संघ था, जिसमें अधिकतर जर्मन राज्य शामिल थे। इसे 1834 में प्रशा की पहल पर स्थापित किया गया। इसका उद्देश्य राज्यों के बीच आर्थिक अवरोधों को हटाना और व्यापार को सरल बनाना था।
जॉलबेराइन (Zollverein) के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. यह संघ जर्मनी के अधिकांश राज्यों को जोड़ता था।
2. इसमें विभिन्न राज्यों के बीच सीमा शुल्क और अन्य आर्थिक अवरोधों को समाप्त कर दिया गया।
3. मुद्राओं की संख्या घटाकर दो कर दी गई, जबकि पहले 20 से अधिक मुद्राएँ प्रचलित थीं।
4. जॉलबेराइन जर्मनी के आर्थिक एकीकरण का प्रतीक बना।
नोट :-
जॉलबेराइन के कारण जर्मनी के विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार सुचारू रूप से होने लगा और आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ हुईं।
प्रश्न :- यूरोप में राष्ट्रवाद की शुरुआत कहाँ से हुई?
उत्तर :- यूरोप में राष्ट्रवादी चेतना की शुरुआत फ्रांस से हुई थी।
यूरोप में राष्ट्रवाद की शुरुआत के विषय में मुख्य बिंदु निम्नलिखित है :-
1. 1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रवाद की नींव रखी।
2. इस क्रांति से “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” का नारा पूरे यूरोप में फैल गया।
3. फ्रांस ने नागरिकों को समान अधिकार दिए और सामंती विशेषाधिकार समाप्त कर दिए।
4. बाद में फ्रांसीसी सेनाएँ जब अन्य देशों में गईं तो वे अपने साथ राष्ट्रवाद का विचार भी ले गईं।
5. इससे यूरोप के अलग-अलग देशों में स्वतंत्रता और एकता की मांग उठने लगी।
नोट :-
फ्रांस की क्रांति के बाद इटली और जर्मनी जैसे देशों ने भी अपने राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया शुरू की।
प्रश्न :- 1789 की फ्रांसीसी क्रांति को राष्ट्रवाद की शुरुआत क्यों माना जाता है?
उत्तर :- चूँकि 1789 की फ्रांसीसी क्रांति राष्ट्रवाद की स्पष्ट तथा पहली अभिव्यक्ति थी। इससे फ्रांस और पूरे यूरोप में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार हुआ। इसलिए 1789 की फ्रांसीसी क्रांति को राष्ट्रवाद की शुरुआत माना जाता है।
1789 की फ्रांसीसी क्रांति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. इस क्रांति ने फ्रांस में राजतंत्र समाप्त कर दिया और सत्ता नागरिकों को सौंप दी।
2. क्रांति से पहले फ्रांस में पूरे राज्य पर एक निरंकुश राजा का शासन था।
3. क्रांतिकारियों ने ऐसे कदम उठाए जिससे फ्रांसीसी लोगों में सामूहिक पहचान (राष्ट्रवाद) की भावना विकसित हुई।
4. नेपोलियन ने प्रशासनिक क्षेत्र में सुधार किए, जिन्हें 1804 की नागरिक संहिता (नेपोलियन की संहिता) कहा जाता है।
5. उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में यूरोप में राष्ट्रीय एकता के विचार उदारवाद से जुड़े हुए थे।
नोट :-
फ्रांसीसी क्रांति के नारे “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” ने इटली और जर्मनी जैसे देशों में भी स्वतंत्रता और एकता की मांग को जन्म दिया।
प्रश्न :- सामूहिक पहचान बनाने के लिए फ्रांस में कौन-कौन से कदम उठाए गए?
उत्तर :- फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राष्ट्रवाद को मज़बूत करने के लिए कई कदम उठाए गए, जिनसे लोगों में सामूहिक पहचान की भावना विकसित हुई।
सामूहिक पहचान बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए :-
1. प्रत्येक राज्य से एक स्टेट जनरल चुनकर तथा उसका नाम बदलकर नेशनल असेंबली रखा गया।
2. फ्रेंच भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया।
3. एक नई प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई, ताकि सबको समान कानून का अनुभव हो।
4. आंतरिक आयात-निर्यात और सीमा शुल्क समाप्त कर दिए गए तथा भार और माप की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
5. स्कूल और कॉलेज की छात्राओं ने समर्थन के लिए क्लब बनाए, जिन्हें जैकोबिन क्लब कहा गया।
6. फ्रांस की आर्मी को विदेशी क्षेत्रों में भेजा गया, जिससे राष्ट्रवादी भावना और मज़बूत हुई।
नोट :-
जब फ्रेंच भाषा को राष्ट्रभाषा बनाया गया, तो अलग-अलग क्षेत्रों के लोग एक साझा भाषा से जुड़कर एकता और राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित हुए।
प्रश्न :- फ्रांस में फ्रांसीसी क्रांति एवं राष्ट्रवाद के प्रभावों को लिखिए।
उत्तर :- 1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने राष्ट्रवाद की नींव रखी। इसने लोगों में समानता, स्वतंत्रता और एकता की भावना को जन्म दिया।
फ्रांस में फ्रांसीसी क्रांति एवं राष्ट्रवाद के निम्नलिखित प्रभाव हुए :-
1. संविधान आधारित शासन व्यवस्था लागू हुई।
2. समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे विचार प्रमुख बने।
3. नया फ्रांसीसी तिरंगा झंडा अपनाया गया।
4. नेशनल असेंबली का गठन किया गया।
5. आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए।
6. माप-तौल की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
7. फ्रेंच भाषा को राष्ट्र की साझा भाषा घोषित किया गया।
नोट :-
फ्रांस में क्रांति के बाद बने तिरंगे झंडे ने लोगों को एक नई सामूहिक पहचान दी।
प्रश्न :- नेपोलियन का शासन काल कैसा था?
उत्तर :- नेपोलियन का शासन काल फ्रांस और यूरोप के लिए एक महत्वपूर्ण दौर था। उसने प्रजातंत्र को हटाकर राजतंत्र स्थापित किया, लेकिन साथ ही प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में कई बदलाव भी किए।
नेपोलियन के शासन के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. नेपोलियन ने फ्रांस में प्रजातंत्र समाप्त कर राजतंत्र को स्थापित किया।
2. उसके समय व्यापार, आवागमन और संचार के साधनों का विकास हुआ।
3. राष्ट्रीयता के विचार को फैलाने के लिए उसने कई विदेशी क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया।
4. जनता पर अधिक कर लगाए और सेना में जबरन भर्ती जैसे कानून लागू किए।
5. 1804 में नेपोलियन संहिता बनाई गई, जिसने समान नागरिक अधिकार और प्रशासनिक सुधार दिए।
नोट :-
नेपोलियन की 1804 की “नागरिक संहिता” (Napoleonic Code) यूरोप के कई देशों के लिए एक आदर्श बनी।
प्रश्न :- 1804 की नेपोलियन संहिता (नागरिक संहिता) क्या थी? इस नागरिक संहिता की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :- 1804 में लागू की गई नेपोलियन संहिता एक महत्वपूर्ण कानूनी सुधार था। इसने जन्म आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त किया और सभी नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित की।
नेपोलियन की 1804 की नागरिक संहिता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों की समाप्ति की गई।
2. सभी को कानून के सामने समानता दी गई और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित किया गया।
3. प्रशासनिक विभाजनों को सरल और व्यवस्थित किया गया।
4. सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया।
5. किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति मिली।
6. शहरों में कारीगरों के श्रेणी संघों (Guilds) के नियंत्रण समाप्त कर दिए गए।
नोट :-
नेपोलियन की नागरिक संहिता से किसानों और आम नागरिकों को स्वतंत्रता और अधिकार मिले, जिससे पूरे यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना मजबूत हुई।
प्रश्न :- जागीरदारी क्या थी?
उत्तर :- जागीरदारी :- एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमें किसान, ज़मींदारों और उद्योगपतियों द्वारा तैयार किए गए सामान या उपज का एक हिस्सा कर के रूप में सरकार या शासक वर्ग को देते थे।
जागीरदारी के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. किसान ज़मींदारों की ज़मीन पर काम करते थे।
2. उन्हें अपनी उपज का एक भाग कर या शुल्क के रूप में देना पड़ता था।
3. यह व्यवस्था किसानों पर भारी बोझ बन गई थी।
4. जागीरदारी प्रणाली से समाज में असमानता और शोषण बढ़ा।
नोट :-
फ्रांस की क्रांति से पहले किसान ज़मींदारों को कर और जागीरदारी शुल्क देने के लिए बाध्य थे।
प्रश्न :- रूढ़िवाद क्या है?
उत्तर :- रूढ़िवाद :- एक राजनीतिक विचारधारा है जो परंपरा, स्थापित संस्थानों और रिवाजों को महत्व देती है। यह अचानक बदलावों के बजाय धीरे-धीरे और क्रमिक विकास को प्राथमिकता देती है।
रूढ़िवाद के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. परंपरा और स्थापित संस्थानों का सम्मान करना।
2. समाज और शासन में अचानक बदलावों से बचना।
3. धीरे-धीरे सुधार और विकास को महत्व देना।
4. सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना।
उदाहरण :-
19वीं शताब्दी के यूरोप में कई शासक और राजनीतिज्ञ रूढ़िवाद के समर्थक थे, जो समाज में धीरे-धीरे सुधार करना चाहते थे बजाय क्रांतिकारी बदलाव के।
प्रश्न :- 1815 के उपरांत यूरोप में रूढ़िवाद कैसा था?
उत्तर :- 1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोप की अधिकांश सरकारों ने रूढ़िवाद की नीति अपनाई। उन्होंने पारंपरिक संस्थाओं और परिवारिक ढांचे को बनाए रखने का प्रयास किया और नेपोलियन के समय हुए कई बदलावों को वापस किया।
1815 के उपरांत यूरोप में रूढ़िवाद के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. नेपोलियन की हार के बाद यूरोप में सरकारों का झुकाव रूढ़िवाद की ओर बढ़ गया।
2. पारंपरिक संस्थाओं और परिवारिक ढांचे को बनाए रखने की कोशिश की गई।
3. नेपोलियन द्वारा किए गए कई सुधारों और बदलावों को समाप्त किया गया।
4. इसे लागू करने के लिए देशों के बीच वियना समझौता (वियना संधि) किया गया।
उदाहरण :-
वियना संधि के तहत फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों ने अपने पूर्व राज्य व्यवस्था और सीमा रेखाओं को पुनर्स्थापित किया।
प्रश्न :- वियना कांग्रेस क्या थी?
उत्तर :- वियना कांग्रेस :- 1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोप की प्रमुख शक्तियों – ब्रिटेन, प्रशा, रूस और ऑस्ट्रिया – के प्रतिनिधि वियना में एक समझौता तैयार करने के लिए इकट्ठा हुए। इसे ही वियना कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य यूरोप में राजनीतिक संतुलन और स्थिरता स्थापित करना था।
वियना कांग्रेस के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. वियना कांग्रेस 1815 में आयोजित की गई थी।
2. इसमें नेपोलियन को हराने वाली प्रमुख यूरोपीय शक्तियाँ शामिल थीं – ब्रिटेन, प्रशा, रूस और ऑस्ट्रिया।
3. सम्मेलन का उद्देश्य यूरोप में राजनीतिक संतुलन और स्थिरता सुनिश्चित करना था।
4. इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियन चांसलर ड्यूक मेटर्निख ने की।
5. वियना कांग्रेस ने नेपोलियन के समय हुए कई बदलावों को रद्द कर पारंपरिक शासन और सीमाओं को पुनर्स्थापित किया।
नोट :-
वियना कांग्रेस के निर्णयों के तहत फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों ने अपनी पूर्व सीमाएँ और शासन व्यवस्था बहाल की।
प्रश्न :- वियना संधि के तहत कौन-कौन से मुख्य निर्णय लिए गए?
उत्तर :- 1815 में वियना संधि के दौरान यूरोप के देशों ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनका उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता और पारंपरिक शासन व्यवस्था को बनाए रखना था।
वियना संधि के तहत तीन मुख्य निम्नलिखित निर्णय लिए गए :-
1. फ्रांस की सीमाओं पर कई नए राज्य स्थापित किए गए ताकि भविष्य में फ्रांस का विस्तार रोका जा सके।
2. फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हटाए गए बूर्वो वंश को पुनः सत्ता में बहाल किया गया।
3. राजतंत्र और पारंपरिक शासन व्यवस्था को बनाए रखा गया।
नोट :-
वियना संधि के निर्णयों से फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में स्थिरता आई और भविष्य में किसी भी क्रांतिकारी विस्तार की संभावना को कम किया गया।
प्रश्न :- 1815 की वियना संधि की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :- 1815 की वियना संधि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. फ्रांस में बूब राजवंश को पुनः सत्ता में बहाल किया गया।
2. इसका मुख्य उद्देश्य यूरोप में नई रूढ़िवादी व्यवस्था स्थापित करना था।
3. फ्रांस ने नेपोलियन के समय जितने क्षेत्र जीते थे, उन पर अपना आधिपत्य खो दिया।
4. फ्रांस के सीमा विस्तार को रोकने के लिए नए राज्यों की स्थापना की गई।
नोट :-
वियना संधि के तहत फ्रांस ने अपने कुछ पूर्ववर्ती क्षेत्रों को छोड़ दिया और यूरोप में राजनीतिक संतुलन बहाल हुआ।
प्रश्न :- यूरोप में क्रांतिकारियों का उदय क्यों हुआ और उनका उद्देश्य क्या था?
उत्तर :- वियना संधि और यूरोप की रूढ़िवादी सरकारों के निर्णयों के विरोध में यूरोप में क्रांतिकारियों का उदय हुआ। उन्होंने गुप्त समाजों का निर्माण कर राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता की भावना फैलाने का प्रयास किया।
यूरोप में क्रांतिकारियों के उदय के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-
1. क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना था।
2. वे वियना संधि और उसके निर्णयों का विरोध करते थे।
3. उनका प्रयास था स्वतंत्रता और समानता की रक्षा करना।
4. उन्होंने गुप्त समाजों और संगठनों के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियाँ की।
नोट :-
19वीं सदी में जर्मनी और इटली में क्रांतिकारियों ने गुप्त समाजों के माध्यम से स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता के लिए आंदोलन शुरू किए।
प्रश्न :- 1830 में यूरोप में भूख, कठिनाई और जनविद्रोह क्यों हुए?
उत्तर :- 1830 को यूरोप में कठिनाइयों और जनविद्रोह का वर्ष माना जाता है। इस दौरान बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, गरीबी और फसल की खराबी के कारण लोग सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे।
1830 में यूरोप में भूख, कठिनाई और जनविद्रोह के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-
1. जबरदस्त जनसंख्या वृद्धि हुई, जिससे संसाधनों पर दबाव बढ़ा।
2. लोग गांव से शहरों की ओर पलायन करने लगे।बेरोजगारी और गरीबी बढ़ गई।फसल बर्बाद होने के कारण खाने-पीने की चीजों की कीमतें बढ़ गईं और छोटे फैक्ट्रियाँ बंद हो गईं।
3. खाने की कमी और व्यापक बेरोजगारी के कारण लोग सरकार के खिलाफ विद्रोह करने लगे।
4. यह आंदोलन कृषक विद्रोह के नाम से जाना गया।
5. परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में यूरोपियन सरकारों ने गणतंत्र राज्य घोषित किए।
नोट :-
फ्रांस में 1830 का जुलाई क्रांति इसी जनविद्रोह और सामाजिक असंतोष का परिणाम थी, जिसने चार्ल्स X की सत्ता को समाप्त कर दिया।
प्रश्न :- गणतंत्र के बाद कानून में कौन-कौन से बदलाव आए?
उत्तर :- गणतंत्र स्थापित होने के बाद यूरोप में कई सुधार किए गए, जिससे नागरिकों को अधिकार और रोजगार की गारंटी मिली और सामाजिक स्थिति सुधरी।
गणतंत्र के बाद कानून में निम्नलिखित बदलाव आए :-
1. 21 साल से अधिक उम्र के लोगों को वोट डालने का अधिकार मिला।
2. सभी नागरिकों को काम के अधिकार की गारंटी दी गई।
3. रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कारखाने और उद्योग स्थापित किए गए।
4. इन सुधारों से धीरे-धीरे गरीबी और बेरोजगारी कम होने लगी।
नोट :-
फ्रांस में गणतंत्र के बाद वोट देने का अधिकार और रोजगार की गारंटी से आम जनता की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
प्रश्न :- नारीवाद (स्त्रीवाद) क्या है?
उत्तर :- नारीवाद :- एक ऐसी विचारधारा है जो महिलाओं को पुरुषों के समान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने की बात करती है।
नारीवाद के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. नारी और पुरुष को समान अधिकार मिलने की मांग।
2. समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने का प्रयास।
3. शिक्षा, रोजगार और राजनीति में समान अवसर की वकालत।
4. महिलाओं के प्रति भेदभाव और अन्याय का विरोध।
नोट :-
19वीं शताब्दी में यूरोप की कई महिलाओं ने समान शिक्षा और मतदान के अधिकार के लिए आंदोलन चलाए, जिससे स्त्री अधिकारों की दिशा में परिवर्तन आया।
प्रश्न :- विचारधारा किसे कहते हैं?
उत्तर :- विचारधारा :- एक विशेष प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि को दर्शाने वाले विचारों का समूह होती है।
विचारधारा के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. यह किसी समाज या राष्ट्र की सोच और नीति को दिशा देती है।
2. इससे व्यक्ति या समूह के कार्यों और उद्देश्यों का निर्धारण होता है।
3. अलग-अलग विचारधाराएँ समाज में भिन्न दृष्टिकोण पैदा करती हैं।
4. जैसे – उदारवाद, रूढ़िवाद, समाजवाद आदि प्रमुख विचारधाराएँ हैं।
उदाहरण :-
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” की विचारधारा ने पूरे यूरोप में जनजागरण फैलाया।
प्रश्न :- जर्मनी का एकीकरण कैसे हुआ?
उत्तर :- जर्मनी का एकीकरण :- एक लंबी राजनीतिक और सैन्य प्रक्रिया थी, जिसमें प्रशा (Prussia) ने मुख्य भूमिका निभाई।
जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित है :-
1. 1848 में यूरोपीय सरकारों ने जर्मनी को एकीकृत करने का प्रयास किया, परंतु राजशाही और सेना की ताकत से यह प्रयास विफल हो गया।
2. इसके बाद प्रशा ने जर्मनी के एकीकरण की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली।
3. प्रशा का मुख्यमंत्री ऑटोमन बिस्मार्क था, जिसे जर्मनी के एकीकरण का जनक माना जाता है।
4. बिस्मार्क ने “लोहा और रक्त” की नीति अपनाते हुए ऑस्ट्रिया, डेनमार्क और फ्रांस के साथ तीन युद्ध लड़े।
5. सात वर्षों में इन तीनों युद्धों में प्रशा की विजय हुई और एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
6. 1871 ई. में केसर विलियम प्रथम को नए जर्मन साम्राज्य का सम्राट घोषित किया गया।
7. एकीकृत जर्मनी में मुद्रा, बैंकिंग और न्यायिक व्यवस्थाओं का आधुनिकीकरण किया गया।
नोट :-
1871 में फ्रांस पर विजय के बाद जर्मनी का एकीकरण पूर्ण हुआ और प्रशा यूरोप की एक प्रमुख महाशक्ति बन गया।
प्रश्न :- इटली का एकीकरण कैसे हुआ?
उत्तर :- इटली का एकीकरण :- एक लंबी और कठिन प्रक्रिया थी, जिसमें कई क्रांतिकारी नेताओं और युद्धों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
इटली के एकीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित है :-
1. इटली सात स्वतंत्र राज्यों में बँटा हुआ था।
2. 1830 के दशक में ज्यूसेपे मेत्सिनी ने “यंग इटली” नामक संगठन बनाकर एकीकृत इटली का विचार प्रस्तुत किया।
3. 1830 और 1848 के क्रांतिकारी विद्रोह असफल रहे, परंतु इन्होंने एकीकरण की नींव रखी।
4. 1859 में सार्डिनिया-पीडमॉण्ट ने फ्रांस के साथ एक चतुर कूटनीतिक संधि की और ऑस्ट्रियाई सेना को हरा दिया।
5. 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
नोट :-
1. इटली के एकीकरण की प्रक्रिया को समझने के लिए तीन प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका पर विचार करना आवश्यक है :-
(i) ज्यूसेपे मेत्सिनी
(ii) काउंट कैमिलो दे कावूर
(iii) ज्यूसेपे गैरीबाल्डी
2. 1861 में इमेनुएल द्वितीय के नेतृत्व में इटली एकीकृत हुआ और रोम को राजधानी बनाकर इटली एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
प्रश्न :- ज्यूसेपे मेत्सिनी कौन थे और उन्होंने इटली के एकीकरण में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर :- ज्यूसेपे मेत्सिनी :- इटली के महान राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्रोत थे। उन्होंने इटली को एकीकृत राष्ट्र बनाने के लिए युवाओं को संगठित किया और क्रांतिकारी विचार फैलाए।
ज्यूसेपे मेत्सिनी से संबंधित प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है :-
1. इनका जन्म 1807 ई. में जेनोआ (इटली) में हुआ था।
2. युवावस्था में वे कार्बोनारी नामक गुप्त संगठन के सदस्य बने।
3. 1831 में लिगुरिया में क्रांति करने के प्रयास के कारण उन्हें देश से निकाल दिया गया।
4. निर्वासन के दौरान उन्होंने दो महत्वपूर्ण गुप्त संगठनों की स्थापना की :-
(i) “यंग इटली” (मार्सेई में)
(ii) “यंग यूरोप” (बर्न में)
5. उन्होंने राजतंत्र का विरोध किया और प्रजातंत्र एवं राष्ट्रीय एकता का समर्थन किया।
6. उनके विचारों और आंदोलनों से इटली के युवाओं में स्वतंत्रता की भावना जागी।
नोट :-
ज्यूसेपे मेत्सिनी के “यंग इटली” आंदोलन ने इटली के युवाओं को एकजुट किया, जिससे आगे चलकर इटली के एकीकरण की नींव पड़ी।
प्रश्न :- काउंट कैमिलो दे कावूर कौन थे और उन्होंने इटली के एकीकरण में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर :- काउंट कैमिलो दे कावूर :- इटली के एकीकरण के प्रमुख निर्माता माने जाते हैं। उन्होंने अपने कूटनीतिक कौशल और राजनीतिक समझ से इटली को एकजुट करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
काउंट कैमिलो दे कावूर से संबंधित प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है :-
1. कावूर सार्डिनिया-पीडमॉण्ट का प्रमुख मंत्री था।
2. उसने इटली के विभिन्न प्रदेशों को एकजुट करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया।
3. कावूर स्वयं न तो क्रांतिकारी था, न ही लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला, बल्कि एक व्यवहारिक राजनीतिज्ञ था।
4. उसने फ्रांस के साथ एक चतुर कूटनीतिक संधि की, जिसके परिणामस्वरूप आस्ट्रिया की हार हुई।
5. उसकी नीतियों और रणनीतियों के कारण इटली के एकीकरण की राह आसान हुई।
नोट :-
कावूर द्वारा फ्रांस से की गई संधि के परिणामस्वरूप 1859 में आस्ट्रिया को पराजित किया गया, जिससे इटली के एकीकरण की प्रक्रिया को मजबूती मिली।
प्रश्न :- ज्यूसेपे गैरीबाल्डी कौन थे और इटली के एकीकरण में उनका क्या योगदान था?
उत्तर :- ज्यूसेपे गैरीबाल्डी :- इटली के एकीकरण के महान जननायक थे। उन्होंने अपने साहस और नेतृत्व से इटली को एक राष्ट्र के रूप में एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ज्यूसेपे गैरीबाल्डी से संबंधित प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है :-
1. गैरीबाल्डी नियमित सेना का हिस्सा नहीं थे, बल्कि उन्होंने स्वयंसेवक सैनिकों का नेतृत्व किया।
2. 1860 में उन्होंने दक्षिणी इटली और दो सिसिलियों के राज्य में प्रवेश किया।
3. उन्होंने स्पेनी शासकों को हटाने के लिए स्थानीय किसानों का समर्थन प्राप्त किया।
4. विजय के बाद उन्होंने दक्षिणी इटली और सिसिली को राजा इमैनुएल द्वितीय को सौंप दिया।
5. उनके त्याग और वीरता के कारण इटली का एकीकरण संभव हुआ।
नोट :-
1860 में गैरीबाल्डी ने अपनी ‘रेड शर्ट्स’ सेना के साथ दक्षिण इटली को जीतकर एकीकृत इटली की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
प्रश्न :- ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का विकास कैसे हुआ?
उत्तर :- ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का विकास :- ब्रिटेन में राष्ट्रवाद किसी अचानक हुई क्रांति का परिणाम नहीं था, बल्कि यह एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम था। औद्योगिक क्रांति के बाद ब्रिटेन की आर्थिक शक्ति बढ़ने से राष्ट्रवाद की भावना धीरे-धीरे विकसित हुई।
ब्रिटेन में राष्ट्रवाद के विकास के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-
1. 18वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन एक एकीकृत राष्ट्र नहीं था, बल्कि इसमें अंग्रेज़, वेल्श, स्कॉट और आयरिश जैसी विभिन्न नृजातीय समूह रहते थे।
2. 1688 में संसद ने राजतंत्र से शक्तियाँ छीन लीं, जिससे लोकतांत्रिक शासन की नींव पड़ी।
3. 1707 में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड को मिलाकर यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन किया गया।
4. 1798 में आयरलैंड के असफल विद्रोह के बाद, 1801 में उसे बलपूर्वक ब्रिटेन में शामिल कर लिया गया।
5. नए ब्रिटेन की पहचान मजबूत करने के लिए झंडा, राष्ट्रगान और सेना जैसे राष्ट्रीय प्रतीकों को प्रोत्साहित किया गया।
उदाहरण :-
1707 के बाद इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के एकीकरण से बना “यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन” राष्ट्रवाद के विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था।
प्रश्न :- बाल्कन समस्या क्या थी? इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- बाल्कन समस्या यूरोप के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित बाल्कन क्षेत्रों में बढ़ते राष्ट्रवादी संघर्षों और यूरोपीय शक्तियों की प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न हुई थी। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई कि अंततः प्रथम विश्व युद्ध का कारण बनी।
बाल्कन समस्या के मुख्य कारण निम्नलिखित है :-
1. भौगोलिक और नृजातीय विविधता वाला क्षेत्र — बाल्कन में आधुनिक रूमानिया, बल्गारिया, अल्बेनिया, ग्रीस, मकदूनिया, क्रोएशिया, स्लोवानिया और सर्बिया जैसे देश शामिल थे।
2. इन क्षेत्रों के मूल निवासी स्लाव कहलाते थे, और अधिकांश क्षेत्र पर ऑटोमन साम्राज्य का नियंत्रण था।
3. रूमानी राष्ट्रवाद के प्रसार और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से बाल्कन में स्वतंत्रता आंदोलनों की लहर उठी।
4. विभिन्न स्लाव जातियाँ अपने स्वतंत्र राष्ट्र बनाने और अधिक क्षेत्र प्राप्त करने की चाह में आपसी टकराव में उतर आईं।
5. यूरोपीय शक्तियाँ जैसे — इंग्लैंड, रूस, ऑस्ट्रिया आदि — इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा करने लगीं, जिससे तनाव और बढ़ गया।
उदाहरण :-
सर्बिया और ऑस्ट्रिया के बीच बढ़ता टकराव और ऑस्ट्रिया के युवराज फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या (1914) ने बाल्कन विवाद को भड़का दिया, जो आगे चलकर प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य कारण बना।
प्रश्न :- साम्राज्यवाद क्या है?
उत्तर :- साम्राज्यवाद :- वह नीति है जिसमें कोई देश अपनी शक्ति और प्रभाव बढ़ाने के लिए सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक साधनों का प्रयोग करता है और अन्य देशों या क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
साम्राज्यवाद की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. यह देश की शक्ति और प्रभुत्व बढ़ाने की नीति है।
2. इसमें सैन्य शक्ति, आर्थिक साधन और राजनीतिक दबाव का प्रयोग होता है।
3. इसका उद्देश्य अन्य देशों या क्षेत्रों पर नियंत्रण और प्रभुत्व स्थापित करना होता है।
4. साम्राज्यवाद अक्सर औपनिवेशिक विस्तार और संसाधनों पर कब्जा के रूप में दिखाई देता है।
उदाहरण :-
19वीं और 20वीं शताब्दी में ब्रिटेन और फ्रांस ने एशिया और अफ्रीका में अपने साम्राज्यवाद के तहत कई क्षेत्रों पर कब्जा किया।
प्रश्न :- रूपक क्या है?
उत्तर :- रूपक वह साहित्यिक उपकरण है जिसमें किसी अमूर्त विचार (जैसे: लालच, स्वतंत्रता, ईर्ष्या, मुक्ति) को किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
रूपक की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है :-
1. अमूर्त विचारों को सजीव और समझने योग्य रूप में प्रस्तुत करता है।
2. 18वीं और 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी भावना को बढ़ाने के लिए इसका व्यापक प्रयोग किया गया।
3. यह विचारों और भावनाओं को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में मदद करता है।
4. साहित्य और राजनीतिक संदेशों में प्रेरणा और चेतना जगाने का साधन होता है।
उदाहरण :-
किसी कविता में स्वतंत्रता को “उड़ती हुई पक्षी” के रूप में दिखाना एक रूपक है, जो लोगों में राष्ट्रवादी भावना को प्रेरित करता है।
प्रश्न :- 18वीं और 19वीं शताब्दी में राज्य की दृश्य कल्पना क्या थी?
उत्तर :- 18वीं और 19वीं शताब्दी में कलाकारों ने राष्ट्र को अमूर्त विचार से जोड़कर नारी रूप में चित्रित किया, जिससे राष्ट्र का ठोस और दृश्य रूप सामने आया।
राज्य की दृश्य कल्पना के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है :-
1. राष्ट्र को नारी भेष में प्रस्तुत किया जाता था।
2. इस नारी का रूप किसी वास्तविक महिला से नहीं, बल्कि राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप देने के लिए चुना गया।
3. यह तरीका राष्ट्रवादी भावना को सजग और प्रेरक बनाने में मदद करता था। उदाहरण के रूप में फ्रांस में मारिआना को जनता और राष्ट्र का प्रतीक माना गया।
4. जर्मनी में जर्मेनिया का रूपक जर्मन राष्ट्र का प्रतीक बना।
उदाहरण :-
फ्रांसीसी क्रांति के समय मारिआना की छवि ने लोगों में स्वतंत्रता और राष्ट्रभक्ति की भावना को सजीव रूप में प्रकट किया।
प्रश्न :- राष्ट्रवाद के उदय में महिलाओं ने क्या योगदान दिया?
उत्तर :- राष्ट्रवाद के उदय में महिलाओं का योगदान :- राष्ट्रवाद के उदय में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया और राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक माध्यमों से राष्ट्रवादी चेतना फैलाने में मदद की।
राष्ट्रवाद में महिलाओं के योगदान के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है :-
1. राजनैतिक संगठन का निर्माण कर आंदोलन को संगठित किया।
2. समाचार पत्रों का प्रकाशन कर राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार किया।
3. मताधिकार प्राप्ति हेतु संघर्ष किया और समान अधिकारों की मांग की।
4. राजनैतिक बैठकों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और आंदोलन को मजबूती दी।
उदाहरण :-
19वीं सदी में फ्रांस और ब्रिटेन में महिलाओं ने मताधिकार आंदोलन और राष्ट्रवादी अखबारों के माध्यम से जनता में जागरूकता फैलाई।
प्रश्न :- विभिन्न राष्ट्रवादी प्रतीक चिन्ह और उनके अर्थ क्या थे?
उत्तर :- 18वीं और 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी आंदोलन में अलग-अलग प्रतीक चिन्हों का प्रयोग किया जाता था, जिनके माध्यम से राष्ट्रवादी विचार और भावनाएँ व्यक्त की जाती थीं।
विभिन्न प्रतीक चिन्ह और उनका अर्थ :-
1. टूटी हुई बेड़िया – आजादी मिलना
2. बाज छाप वाला कवच – जर्मन समुदाय की प्रतीक शक्ति
3. बलूत पत्तियों का मुकुट – वीरता
4. तलवार – मुकाबले की तैयारी
5. तलवार पर लिपटी जैतून की डाली – शांति की चाह
6. काला, लाल और सुनहरा तिरंगा – उदारवादी राष्ट्रवादियों का झंडा
7. उगते सूर्य की किरणें – एक नए युग की शुरुआत
उदाहरण :-
जर्मन राष्ट्रवाद में बाज छाप वाला कवच और काला-लाल-सुनहरा तिरंगा प्रमुख प्रतीक थे, जो राष्ट्र की शक्ति और एकता को दर्शाते थे।